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Bihar Election : उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी से आगे निकलने की कोशिश में चिराग पासवान, सीट शेयरिंग पर शह मात का खेल

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Bihar Chunav 2025: चिराग पासवान की बढ़ती सक्रियता ने बिहार की सियासत में सरगर्मी तेज कर दी है. एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर उनकी मांगें उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के लिए चुनौती बन गई हैं.क्या चिराग अपने ...और पढ़ें

कुशवाहा और मांझी से आगे निकलने की कोशिश में चिराग,सीट शेयरिंग पर शह मात का खेल
चिराग पासवान की बिहार में सक्रियता से एनडीए के भीतर हलचल मचा दी है.
हाइलाइट्स
  • चिराग पासवान की बढ़ती सक्रियता से बिहार की राजनीति में हलचल.
  • एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर चिराग पासवान की मांगें चुनौती बनीं.
  • चिराग पासवान ने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा बुलंद किया है.

पटना. बिहार की सियासी गलियारों में इन दिनों हलचल तेज है. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर शह-मात का खेल शुरू हो गया है और इस खेल में सबसे सक्रिय नाम चिराग पासवान का है. पिछले पांच कार्यक्रमों में चिराग की बढ़ती सक्रियता ने न सिर्फ उनकी महत्वाकांक्षाओं को उजागर किया है, बल्कि साथी सहयोगियों उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के लिए भी चुनौती खड़ी कर दी है. क्या चिराग इस बार एनडीए में अपनी स्थिति मजबूत कर पाएंगे या यह महज एक सियासी दांव है? आइए इस सियासी शतरंज की बारीकियों को समझते हैं.

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने बिहार में पिछले कुछ समय में अपनी सक्रियता बढ़ाई है. हाल के दिनों में कई जनसभाएं और रणनीतिक बैठकें की हैं.उनके कार्यक्रमों पर गौर करें तो बते 8 जून को चिराग पासवान ने आरा रमना मैदान में नव संकल्प महासभा को संबोधित किया. यह रैली उनकी सियासी महत्वाकांक्षा को दर्शनाने वाली और शाहाबाद क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश थी. इसके पहले पटना में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में चिराग ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की मांग का प्रस्ताव पारित कराया जो उनकी रणनीति का हिस्सा था.

वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति पर काम

इसके पहले वैशाली में जन आशीर्वाद सभा में चिराग ने बिहार के विकास और पलायन जैसे मुद्दों पर बात की और साथ ही अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया. वहीं, दलित सेना की बैठक में चिराग पासवान ने दलित समुदाय को साधने के लिए एक बैठक आयोजित की जिसमें उन्होंने अपने वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति पर काम किया. वहीं, विभिन्न जिलों में चिराग पासवान ने कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया जहां उन्होंने ‘बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट’ का नारा बुलंद किया और संगठन को एकजुट करने का प्रयास किया. जाहिर है ये कार्यक्रम उनकी सियासी जमीन तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं.

एनडीए में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार

चिराग पासवान ने पिछले पांच कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता को साफ दर्शाया है. हाल में आरा की नव संकल्प सभा से लेकर विभिन्न जिलों में कार्यकर्ता सम्मेलनों और अन्य आयोजनों में चिराग पासवान ने ‘बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट’ का नारा बुलंद किया और यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी पार्टी एनडीए में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है. उनका दावा है कि उनकी पार्टी को कम से कम 40 सीटें मिलनी चाहिए. उनका यह दावा उनके लोकसभा चुनावों में 100% स्ट्राइक रेट की उपलब्धि को लेकर है. यह मांग न सिर्फ उनके सहयोगियों के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि एनडीए की एकता पर भी सवाल खड़े कर रही है.

चिराग की सक्रियता ने बढ़ाई उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की टेंशन. (फाइल फोटो)

अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं चिराग

उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) भी सीटों की अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं. कुशवाहा ने कुछ सीटों की मांग की है, जबकि मांझी ने 35-40 सीटों का दावा ठोकते हुए अपनी पार्टी के लिए कसबा सीट पर उम्मीदवार तक घोषित कर दिया है. इस बीच चिराग पासवान का आरा रैली में यह कहना कि वे उस सीट से चुनाव लड़ेंगे जो लोग तय करेंगे. साफ संकेत है कि वे अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं. यह कदम मांझी और कुशवाहा के लिए सीधा संदेश है कि चिराग अब सिर्फ एक छोटे सहयोगी के रूप में नहीं, बल्कि एक मजबूत दावेदार के रूप में उभर रहे हैं.

चिराग की सक्रियता बीजेपी की रणनीति का हिस्सा?

हालांकि, इस शह-मात के खेल में कई सवाल उठ रहे हैं. क्या चिराग की बढ़ती सक्रियता बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है जो नीतीश कुमार के प्रभाव को कम करना चाहती है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी चिराग को बढ़ावा देकर जेडीयू को कमजोर करने की कोशिश कर सकती है, लेकिन यह दांव उलटा भी पड़ सकता है. मांझी ने चिराग पर तंज कसते हुए कहा कि जो ताकतवर है, वह समय आने पर दिखाएगा जो साफ तौर पर उनकी नाराजगी को दर्शाता है. दूसरी ओर कुशवाहा भी चुप नहीं बैठे हैं और अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाए हुए हैं.

रामविलास पासवान की विरासत से आगे बढ़ने की मंशा

चिराग की रणनीति में एक और पहलू उनकी सामाजिक आधार बढ़ाने की कोशिश है. वे अब सिर्फ पासवान समुदाय तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि सामान्य सीटों से चुनाव लड़कर व्यापक समर्थन हासिल करने की योजना बना रहे हैं. यह कदम उनके पिता रामविलास पासवान की विरासत से आगे बढ़ने की उनकी मंशा को दिखाता है. लेकिन, क्या वे मांझी के अनुभव और कुशवाहा के कुशवाहा वोट बैंक को चुनौती दे पाएंगे? इस सवाल का जवाब अभी आना बाकी है.

खतरे में पड़ सकती है एनडीए गठबंधन की एकता

वहीं, एनडीए के बड़े भाई बीजेपी की भूमिका भी अहम होगी. अगर चिराग को ज्यादा सीटें मिलती हैं तो मांझी और कुशवाहा नाराज हो सकते हैं, जो गठबंधन की एकता को खतरे में डाल सकता है. दूसरी ओर अगर उनकी मांगें न मानी गईं तो चिराग के पास 2020 की तरह अकेले चुनाव लड़ने का विकल्प भी हो सकता है जो बीजेपी के लिए जोखिम भरा होगा.जाहिर है चिराग पासवान की बढ़ती सक्रियता बिहार की सियासत में एक नया मोड़ ला रही है. पिछले पांच कार्यक्रमों ने उनकी महत्वाकांक्षा और रणनीति को साफ कर दिया है, लेकिन यह शह-मात का खेल कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बताएगा.

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Vijay jha
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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